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अपनी हस्ती को मिटाकर कुछ पाना इस दौर में मुमकिन नहीं चेहरा गर मुरझाया तो कमज़र्फ लोग तेरी राज तलाश करेगें कमज़ोरी ज़ाहिर हुई जुबां से जीना महाल होजायेगा जहान में माजी में ईमानदारी , सच्चाई , इंसाफ़ पसंद लोगों की कद्र थी हाल काल में झूठे, मक्कार की आबादी है सच्चे को फंसाया जाता है ख़ाक में मिलकर अब इंसान नहीं बेजान दाना गुलज़ार होता है मिर्ज़ा गालिब अपनी जुर्म ख़ुद कबूल करते थे अपनी दौर में इकबाल ने इंसान की लिखी किताब को फौकियत नहीं दिया सर्च तहकीक और तखलीक मिजाज़ था अल्लामा इक़बाल का खुदा की कायनात समझने में ख़ुद मिटे तो आज नाम है संसार में हम समझते हैं सच्चाई की राह चलने वालों का ख़ैर नहीं अब जहान में कलयुग है शरारती लोग जन्म लेता सत्ययुग देखा नहीं न यकीं होता दिल में वसी अहमद क़ादरी वसी अहमद अंसारी 13 . 12 . 23
ترمیمअपनी हस्ती को मिटाकर कुछ पाना इस दौर में मुमकिन नहीं
चेहरा गर मुरझाया तो कमज़र्फ लोग तेरी राज तलाश करेगें
कमज़ोरी ज़ाहिर हुई जुबां से जीना महाल होजायेगा जहान में
माजी में ईमानदारी , सच्चाई , इंसाफ़ पसंद लोगों की कद्र थी
हाल काल में झूठे, मक्कार की आबादी है सच्चे को फंसाया जाता है
ख़ाक में मिलकर अब इंसान नहीं बेजान दाना गुलज़ार होता है
मिर्ज़ा गालिब अपनी जुर्म ख़ुद कबूल करते थे अपनी दौर में
इकबाल ने इंसान की लिखी किताब को फौकियत नहीं दिया
सर्च तहकीक और तखलीक मिजाज़ था अल्लामा इक़बाल का
खुदा की कायनात समझने में ख़ुद मिटे तो आज नाम है संसार में
हम समझते हैं सच्चाई की राह चलने वालों का ख़ैर नहीं अब जहान में
कलयुग है शरारती लोग जन्म लेता सत्ययुग देखा नहीं न यकीं होता दिल में
वसी अहमद क़ादरी
वसी अहमद अंसारी
13 . 12 . 23 110.225.75.27 17:16، 13 دسمبر 2023ء (م ع و)
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